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काजल द्विवेदी “कौमुदी”

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काजल द्विवेदी

प्रयागराज के सोरांव, मेजारोड की रहने वाली कौमुदी | जीवन में कभी हार ना मानने वाला जज़्बा और कुछ नया और हमेशा अच्छा करने की सोच रखने वाली लड़की |
इन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग ब्रांच से डिप्लोमा किया है और इस समय इसी क्षेत्र में कैरियर बनाने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं |
पिताजी का नाम श्री संदीप कुमार द्विवेदी है और माताजी का नाम श्रीमती किरन द्विवेदी है | दादाजी श्री रामभवन द्विवेदी और दादी का नाम श्रीमती उमा द्विवेदी है |
बचपन से ही कविताएँ , कहानियाँ लिखने और पढ़ने में इनकी रूचि रही है |
अभिनव ज्योति द्वारा संकलित “बुझा हुआ चांद” किताब में बतौर सह-लेखिका इनकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं |
ये विभिन्न सोशल मीडिया ऐप्स पर अपनी रचनाएँ लिखती हैं |
इनके जीवन का सारांश है “अंधकार से फूटती एक बूंद रौशनी हूँ मैं |”
आप इनकी रचनाएँ इंस्टाग्राम आईडी @kaumudi5555 पर पढ़ सकते हैं |
जीवन का मूल उद्देश्य है जरूरतमंदों के लिए आवाज़ उठाना जिसकी झलक इनकी रचनाओं में भी दिखती है |

इनकी कुछ रचनाएँ हैं……..

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भूख : सत्ता और रोटी की

वह जो गरीब, भुखमरा है
नंगे पैर, फटे कपड़े पहने,
सबके सामने हाथ फैलाता है
लोग कहते हैं कि,
इनका तो काम ही सबको लूटना है |

वह जो रोटी की
भूख मिटाने के लिए ,
दो निवाले की चोरी करता है ,
पेट भरने के लिए
भीख मांगते फिरता है
उसे दो रोटी के बदले
डाँट – दुत्कार जरूर मिलता है |

और……..

वह जो लूटते हैं देश को ,
सत्ता – सत्ता करते हैं ,
अधिकार के नाम पर
” भीख ” देने की गुजारिश करते हैं,
उनको हम सिर पर बिठा लेते हैं,
वे जाति – विशेष परख कर
भोजन करते हैं,
फिर आती है अखबार में खबर,
” उन्होंने ” , ” इनके घर ” पर
खाना खाया |

अरे ! बताओ सबको ” खाने ” का
काम तो उनका बरसों पुराना है,
लूटना – खाना यही तो
” उनका ” धंधा है |

यह ” सत्तात्मक भूख ” इतनी ज्यादा है
इसकी चपेट में आकर
दंगे होते हैं,
धर्म – जाति के मुद्दे इससे उठते हैं,
स्त्री के अधिकार यहीं पनपते हैं,
युवाओं के रोजगार के
रास्ते यहीं से खुलते हैं,
वस्त्रों की आजादी के मायने
इसी ” भूख ” से निकलते हैं |

अगर नहीं आता इसकी चपेट में कोई
तो यह बचा हुआ व्यक्ति है
वह भीख मांगने वाला,
जो अभी भी कहीं देख रहा होगा
दो रोटी की आस |

कितना विरोधाभास है
असली भूख और नकली भूख में,
और यह समझना कितना जरूरी है कि
लुटेरे कौन हैं और
भिखारी कौन!

काजल द्विवेदी ” कौमुदी ”

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काश! ऐसा हो जाए

एक असली सत्य बताऊँ
अपनी सोच के हिसाब से…..

तो सत्य यह है कि जिस दिन
हम कहीं भी रेप होने पर
उसे दबाने और छुपाने के बजाय
थोड़ा हिम्मत करके इसके खिलाफ आवाज उठा दें तो……
रौंदी हुई स्त्रियाँ मुख्य रूप से ध्यान दें,
तुम सब संगठित होकर अगर
बलात्कारियों का नाम लेकर
सड़कों पर उतर आओ
और लिख दो उनका नाम जगह – जगह
और कालिख से भर दो सड़कें…….
यकीन करो,
कालिख पुत जाएगी समाज के चेहरे पर
और नंगे हो जाएंगे बलात्कारी सरेआम |

काजल द्विवेदी “कौमुदी”

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